देखो बहता निर्मल जल कुछ बोल रहा (hindiiikaviii007 poetry )
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जय श्री राम मित्रो
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आपके समक्ष प्रस्तुत है ।ये कविता
देखो बहता निर्मल जल कुछ बोल रहा (hindiiikaviii007 poetry )
सूरज की किरणो से मनमोह रहा है।
ये बहता निर्मल जल कुछ बोल रहा है।
जीव हजार जीवन हजारो है इसमे ।
फिर भी क्या ये खोज रहा है।
ये बहता जल कुछ बोल रहा है।
रूकता नही ये नीर ये तो बस चलता जा रहा है।
साथ अपने कंकडो का कुछ समूह ला रहा है।
निकट के उन पोधो को जगा रहा है।
पूरी दुनिया सी है उसमे
पर फिर भी वो हर पल चलकर नई मंजिल खोज रहा है।
ये बहता निर्मल जल कुछ बोल रहा है ।
ये बहता निर्मल जल कुछ बोल रहा है।
जीव हजार जीवन हजारो है इसमे ।
फिर भी क्या ये खोज रहा है।
ये बहता जल कुछ बोल रहा है।
रूकता नही ये नीर ये तो बस चलता जा रहा है।
साथ अपने कंकडो का कुछ समूह ला रहा है।
निकट के उन पोधो को जगा रहा है।
पूरी दुनिया सी है उसमे
पर फिर भी वो हर पल चलकर नई मंजिल खोज रहा है।
ये बहता निर्मल जल कुछ बोल रहा है ।
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