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वो बचपन जब मै नही हम हुआ करते थे।

असली जिदंगी को जिया करते थे।


दोपहर मे जब तितलियां पकड़ा करते थे।

एक दूसरे को जब कबड्डी मै जकड़ा करते थे।

बनाकर  छोटे छोटे से घर हम कितना खेला करते थे।

लड जाते थे एक दूसरे से तो न उससे बोला करते थे।

बातो ही बातो मे एक दूसरे के राज खोला करते थे।

किसने बनायी यह पढाई यह बात सोचा करते थे।

बनाकर रस्सियो की बस पूरी दुनिया घूमा करते थे।

लुका छुपी, गिल्ली डंडा न जाने क्या क्या खेला करते थे ।

पूरा दिन निकल जाता था । कुछ ऐसा मेला करते थे।

    एक दूसरे को चिढ़ाकर गुरु चेला कहते थै।

   घर वालो से छुपकर  सब खूब तैरा करते थे।

भूतो की कहानिया, जादू ये सुनते थे हम

क्योकि तब ये कार्टून न चला करते थे।

वो बचपन जब मै नही हम हुआ करते थे।,,,,,,





                          

               अभी तो ये शुरूआत है।

थकने से लगे है पैर

टूटने से लगे है धैर्य 

आसान होता इतना ही तो करते सब यही

ये दर्द चोट मुश्किल ही तो 

सही रास्ते का प्रमाण है।

अभी तो ये बस शुरुआत है।

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